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JAB YAD TERI AAI

       जब याद तेरी आई मेरे लिए भला ये कैसी खलिस है   गुरुर था पहले, अब कैसी कसिस है नजरो को मिलाकर, ढूढूँ   हुस्न ये कैसी नहीं मिलती किसी को चाहत ये ऐसी। लम्हें  हसीन हो जाते हैं , चाहते संगीन मिल जाए नजर इत्तेफाक सा सीन अब ढूढ़ता हुँ  आसमाँ  में तुझको भा  रही सादगी अब मुझको। सोचता हुँ  भुल जाऊँ   लम्हो को मगर नजर में मन के बसा लिया जिसको सारी   रात बीती नींद  न आई करवट बदल-बदल कर  रात बीताई। आखों  का जुमला कैसे कहूँ वो सपनो में आई बिलख रहा था   मन मेरा ....... भूल गया दिल को याद  तेरी आई।                                      जागेश्वर  सिंह 'सिंगरौलिया '

SOCHATA HU

          सोचता हूँ .....            सोचता हूँ गर  एक  तरफ बढ़ा तो,   दुसरा छूट जाएगा   अपने सपने साकार करने में,  जाने किसका सपना टुट  जाएगा।     शायद  दुनिया में   कहने को   एक नया  परवाना मिल जाएगा ।।   कहूँ  किससे अपने दिल की बातें ;   मायूस  पड़ी वो  जज्बातेँ ;  माँ -पापा  या  भैया से    फिर भी कह न पाउँगा   जो दिल चाहता है।     रह न पाउँगा ,कह भी न पाउँगा    शायद कहने में   अवहेलना का डर  लगता है  आज चाँद का ठिकाना भी,  गुजर- बसर का घर   लगता  है   एक क्षण जी में आता है  दुनिया की हर उस सत्य को  सामने ला दूँ ;   जो मैंने छुपा रखे है, मन में  संवेदना की झरोखों  में;  तह किए हुए पन्नो में ;  पर शायद  यही रहस्य ...
आप सभी को धन्यवाद और आप लोगों का दिल से आभार